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ये कैसे माओवादी?

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महज दो साल पहले तक कबीर कला मंच की पहचान पुणे में एक सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के समूह के रूप में थी और यह पूरे महाराष्ट्र में दलितों के बीच गीतों के जरिये पैठ रखता है। लेकिन दलित उत्पीड़न और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने वाले इन लोगों पर अब देशद्रोह के आरोप लगाए जा रहे हैं। यहां अहम सवाल यह उठता है कि क्या विरोध का मतलब देशद्रोह होता है?



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