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रवीश कुमार का प्राइम टाइम: BJP की ही रहीं सुषमा, कभी केंद्र तो कभी हाशिये पर

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राजनीति की दुनिया की रिश्तेदारियां लुभाती भी हैं और दुखाती भी हैं. उसकी कशिश को समझना मुश्किल है. पक्ष और विपक्ष का बंटवारा इतना गहरा होता है कि अक्सर इस तरफ के लोग उस तरफ के नेता में अपना अक्स खोजते हैं. लगता है कि वहां भी कोई उनके जैसा हो. यह कमी आप तब और महसूस करते हैं जब राजनीतिक विरोध दुश्मनी का रूप लेने के दौर में पहुंच जाए. सुषमा स्वराज को आज उस तरफ के लोग भी मिस कर रहे हैं. उनके निधन पर आ रही प्रतिक्रियाओं में यह बात अक्सर उभरकर आ रही है कि वे पुराने स्कूल की नेता थीं. नए स्कूल के साथ चलती हुई सुषमा स्वराज पुराने स्कूल वाली नेता क्यों किसी को लग रही थीं. वो अपने पीछे बहुत गहरा सवाल छोड़ गईं हैं. आखिर सुषमा स्वराज के राजनीतिक जीवन में ऐसी क्या बात थी कि उनका जाना सबको अखर रहा है. 67 साल की उम्र तो कुछ भी नहीं है. वक्ताओं से भरी बीजेपी में सुषमा स्वराज जैसी वक्ता कब श्रोता बनकर रह गईं किसी को पता नहीं चला. राजनीति में जब तक हाशिये पर नहीं जाते, हाशिये से केंद में नहीं आते, आप नेता नहीं बनते हैं. सुषमा स्वराज भी अपवाद नहीं थीं.



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