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रवीश कुमार का प्राइम टाइम : पावर, पवार और संविधान दिवस का त्योहार

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संविधान ने हक तो सबको बराबर दिया है लेकिन उस हक को हासिल करना सबके लिए बराबर नहीं है. मतलब आप ग़रीब हैं तो क्या आपको समय से न्याय मिलता है, या अमीरों को ही न्याय तेज़ी से मिलता है. न्याय इलाज की तरह पहले से महंगा हुआ है. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के अनुसार भारत के अधीनस्थ अदालतों में एक मुकदमे को निपटाने में औसतन 5 साल लग जाता है. 23 लाख केस ऐसे हैं जो 10 साल से लंबित हैं. महाराष्ट्र की घटना 80 घंटे में संविधान की सांस फुलाने वाली थी लेकिन इसी दौरान इसकी परीक्षा भी हो रही थी. हमारे राजनेता संविधान का पालन तब करते नज़र आते हैं जब मौका उनके हाथ से निकल जाता है. जब कोई रास्ता नज़र नहीं आता है. बिहार के उप मुख्य मंत्री सुशील मोदी का एक ट्वीट आज के दिन याद किया जाना चाहिए. सुबह सुबह बिना किसी को बताए मुख्यमंत्री पद की शपथ को लेकर जब सवाल उठा तो उनका ट्वीट क्या संवैधानिक मर्यादा के अनुकूल था. ऐसा कब हुआ है कि शपथ लेने के बाद दुनिया को पता चला कि मुख्यमंत्री हुआ है. आम तौर पर यही होता था कि पहले पता चलता था फिर शपथ होती थी. एक से एक राजनीतिक संकटों के बीच यही हुआ है.



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