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हम जिस तरह से देखने के आदी हैं

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वह हमारे समाज में महिलाओं की आज़ादी पर पहरा लगा रही हैं। आखिरकार ये नज़रें इस तरह के स्वभाव को अपना कैसे लेती हैं। हम बात करना चाहते हैं कि यह नज़र कौन बनाता है? क्या हम इस नज़र को जानते हैं? क्या हमें ज़रूरत है कि महिलाओं को वह सम्मान लौटाया जाए, जिससे जो नज़रें इन्हें घूरती हैं, वे खुद-ब-खुद शर्मसार होकर झुक जाएं। बुलंदी पर पहुंचती महिलाएं ही समाज का विकास कर सकती हैं।



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