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प्राइम टाइम: पांच साल में चायवाले से चौकीदार तक का सफर

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चुनाव शुरू हो चुका है अभी तक कैच लाइन का पता नहीं है, बल्कि कैच लाइन वालों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. हो सकता है अभी आगे के लिए बचा कर रखा हो मगर जो आ रहा है उसमें मज़ा नहीं आ रहा है. 2014 का याद कीजिए. अच्छे दिन आने वाले हैं कैंपेन चल पड़ा था. इस कैंपेन की चुनाव के दौरान धुलाई नहीं हो सकी. उस स्लोगन के बहाने जो लिखा गया, जो गाया गया मतदाता के बड़े वर्ग का वो गीत बनता चला गया. कायदे से स्लोगन तो यही हो सकता था कि अच्छे दिन आ गए हैं, अब आगे बहुते अच्छे दिन आने वाले हैं. विपक्ष ने भी अच्छे दिन कहां हैं, पूछ-पूछ कर पुराना कर दिया है और सत्ता पक्ष भी इससे बोर हो गया होगा. तभी तो पहले मोदी है तो मुमकिन है लॉन्च हुआ. अगर वो जुबान पर चढ़ा होता तो हां मैं भी चौकीदार हूं लॉन्च नहीं होता.



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