इन तमाम वर्षों में माओवादियों के ख़िलाफ़ सीआरपीएफ़ के पुरुष जवान लड़ते रहे. लेकिन अब ये कहानी बदल रही है. अब महिला बटालियनें भी मैदान में हैं.
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