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महाराष्ट्र में 6000 से ज़्यादा टैंकर, मराठवाड़ा कैसे बुझाए अपनी प्यास?

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जाने माने पत्रकार पी साईनाथ ने किताब लिखी थी- एवरीवन लव्स अ गुड ड्राउट- सूखा बहुत सारे लोगों को रास आता है. कई तरह के कारोबारियों को, ठेकेदारों को, सरकारी अफ़सरों को, दलालों को और तरह-तरह के संदिग्ध लोगों को. दूसरों की तकलीफ, दूसरों के संकट को मुनाफ़े में बदलना भी एक कला है जो बाढ़, सूखे या किसी त्रासदी के समय अपने चरम पर दिखाई पड़ती है. अब सरकारों की बदइंतज़ामी हो या उनकी लापरवाही, ऐसे हालात लगातार बड़े होते जाते हैं जिसमें कोई गरीब या मजबूर आदमी ताकतवर लोगों के लालच का शिकार हो. झुलसते हुए मराठवाड़ा में, अगर कुछ फूल-फल रहा है तो वो टैंकर का धंधा है. अब हर तरफ़ टैंकर हैं. क़ायदे से इन्हें बिल्कुल आख़िरी उपाय होना चाहिए था. इस साल सरकार ने राज्य भर में 6443 टैंकर लगाए हैं. बीते साल के मुक़ाबले इस साल छहगुना ज़्यादा टैंकर हैं. अकेले मराठवाड़ा में 3359 टैंकर लगे हुए हैं. इस टैंकर बूम का फ़ायदा किसको हुआ है? बाबूनाथ लोढ़ा जैसे लोगों को जिनके पास बीड़ ज़िले के ज़्यादातर टैंकरों का ठेका है. लोढ़ा बीजेपी से हैं और बताते हैं कि उनके क़रीब 150 टैंकर चलते हैं.



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